विभिन्न रामायण एवं गीता >> भगवती गीता भगवती गीताकृष्ण अवतार वाजपेयी
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गीता का अर्थ है अध्यात्म का ज्ञान ईश्वर। ईश्वर शक्ति द्वारा भक्त को कल्याण हेतु सुनाया जाय। श्रीकृष्ण ने गीता युद्ध भूमि में अर्जुन को सुनाई थी। भगवती गीता को स्वयं पार्वती ने प्रसूत गृह में सद्य: जन्मना होकर पिता हिमालय को सुनाई है।
देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम्
अयि गिरि-नन्दिनि नन्दितमेदिनी विश्व-विनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनी जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठ-कुटुम्बिनि भूरिकृदुम्बिनि भूतिकृते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।1।।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरअर्षिणि दुर्मुख-मर्षिणि हर्षरते।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि कल्पषमोषिणि घोषरते।
दनुजनिरीषिणि दुर्मदशोश्रिणि दुमुनिरोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।2।।
जय जगदम्ब! कदम्बवन-प्रियवासिनि तोषिणि हासरते
शिखरि-शिरोमणि-तुंगहिमालय-श्रृंगनिजालय-मध्यगते।
मधुमधुरे मधु-कैटभ-गञ्जिनि महिषविदारिणि रासरते
जय जय हे महिथासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।३।।
अयि निजहुंकृति-मात्रनिराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते
समरविशोषित-रोषित-शोणित-बीजसमुद्भव-बीजलते।
शिव-शिव-शुम्भ-निशूम्भ महाहव-तर्पित-भूत-पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।4।।
अयि शतखण्ड-विखण्डित-रुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते
निज भुजदण्ड-निपातितचण्ड-विपाटितघुण्ड-भटाधिपते।
रिपुगजगण्ड-विदारण-चण्डपराक्रम-शौण्डमृगाधिपते
जय जय हे महिषासुग्मद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।5।।
धनुरनुषंग-रणक्षणसंग-परिस्फुरदंग-नटत्कटके
कनक-पिशगं-पृषत्कनिषंग-रसदभटदंग-हताष्टुके।
हतचतुरंगबल-क्षितिरंग-भटद-अहुरंग-रटद-यहके
जय जय हे माईषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।6।।
अयि रणदुर्मद-शत्रुवधायर-दुर्धर-निर्भर-शक्तिपते
चतुर-विचार-धुरीण-मसशयदूतकृत-प्रमथाधिपते।
दुरित-दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानवद्य-दुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।7।।
अयि शरणागत-वैरिवधूजन-वीरवराभय-दायिकरे
त्रिभुवनमस्तक-शूलविरोधि-शिरोधिकृतामल-क्लकरे।
दुमिदुमितामर-दुन्दुभिनाद-मुहुखरीकृत-दिंडनकरे
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।8।।
सुरललना-ततथेयितं-थेयित-थाभिनयोत्तर-नृत्वरते
कृतकुख्या-कुकुथोदि-डदाडिक-तालकुतूहल-गानरते।
धुधकुट-धूधटु-धिन्धि-मितध्वनि-धीरमृदंग-निनावरते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।9।।
जय जय जाप्यजये जयशब्द-परस्तुति-तत्पर-विश्वनुते
झणझण-झिंझिम-झिंकृत-नूपुर-शिञ्जित-मोहित-भूतपते।
नटितनटार्ध-नटीनटनायक-नाट-ननाटित-नाट्यरते
जय जय हे महिषासुरभद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।1०।।
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोरमकान्तियुते
श्रितरचनी रजनी रजनी रजनी-रजनीकर-वक्त्रभृते।
सुनयन-विभ्रमर-भ्रमर-भ्रमर-भ्रमर-भ्रमराभिदृते
जय जय है महिषासुरमद्रिनि रम्बकपद्रिनि शैलसुते।।11।।
महित-महाहव-मल्लमतल्लिक-बल्लित-रल्लित-भल्लरते
विरचितविल्ल-थ्यपालिक-यल्लिक-झिल्लिक-भिल्लिकवर्गवृते।
श्रुतकृतपुल्ल-समुल्लसितारुण-तल्लज-पल्लव-सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।12।।
अयि सुदतीजन-लालस-मानस-मोहन मन्धरराजसुते
अवरिल-गण्डगलन्-मदनेदुर-मत्त-मतंगजराजगते।
त्रिभुवन-भूषण-भूत-कलानिथिरूप-पयोनिधिराजसुते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्बकपद्रिनि शैलसुते।।13।।
कमलदलामल-कोमलकान्ति-कलाकलितामल-भालतले
सकलदलामल-कोमलकान्ति-कलाकलितामल-भालतले।
सकल-विलास-कलानिलय-क्रमकेलिचलत्-कलहंसकुले
अलिकुलसंकृल-कुन्तलमण्डल-मौलिमिलद-बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।14।।
करमुरलीरव-वर्जित-कूजत-लज्जित-कोकिल-मञ्जुमते
मिलित-मिलिन्द-मनोहरगुञ्जित-रञ्जित-शैलनिकृञ्जगते।
निजगण-भूतमहाशवरीगण-रंगणसम्भृत-केलिरते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।15।।
कटितटपीत-दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चण्डरुचे
जितकनकाचल-मौलिमदोजिंत-गर्जितकृञ्जर-कृम्भकुचे।
प्रणतसुराम्सुर-मौलिमणि-स्कूरदंशुलसन्नखचन्हरुचे
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।16।।
विजित-सहसकरैक-सहस्त्रकरैक-सहस्त्रकरैकनुते
कृतसुरतारक-संगरतारक-सङग्रतारक-सूनुनुते।
सुरथसमाथि-समानसमाथि-समानसमाधि-सुजाप्यरते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।17।।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परं पदमत्विति शीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।18।।
कनकलसत्-कलशीकजलैरनुधिञ्जिति तेऽडत्गणरंगभुवम्
भजति स किं न शचीकृचकृम्भ-नदीपरिरम्भ-सुखानुभवम्।
तव चरण शरणं करवाणि सुवाणि पथ मम देहि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुते।।19।।
तव विमलेडकलं वदनेन्दुमलं कलयन्ननुकूलयते
किमु पुरुहूत-पुरीन्दुमुखी-सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रिथते।
मम तु मतं शिवमानधने भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्यकपद्रिनि शैलसुतै।।2०।।
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगती जननीति यथाऽसि मयाऽसि तथाऽनुमतासि रमे।
यदुचितमत्र भवत्पुरगं कुरु शाम्भवि देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषासुरमद्रिनि रम्मकपद्रिनि शैलसुते।।21।।
स्तुतिमिमा स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत्।
परमया रमया स निधेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।22।।
इति देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम् समाप्तम्।
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- अपनी बात
- कामना
- गीता साहित्य
- भगवती चरित्र कथा
- शिवजी द्वारा काली के सहस्रनाम
- शिव-पार्वती विवाह
- राम की सहायता कर दुष्टों की संहारिका
- देवी की सर्वव्यापकता, देवी लोक और स्वरूप
- शारदीय पूजाविधान, माहात्म्य तथा फल
- भगवती का भूभार हरण हेतु कृष्णावतार
- कालीदर्शन से इन्द्र का ब्रह्महत्या से छूटना-
- माहात्म्य देवी पुराण
- कामाख्या कवच का माहात्म्य
- कामाख्या कवच
- प्रथमोऽध्यायः : भगवती गीता
- द्वितीयोऽध्याय : शरीर की नश्वरता एवं अनासक्तयोग का वर्णन
- तृतीयोऽध्यायः - देवी भक्ति की महिमा
- चतुर्थोऽध्यायः - अनन्य शरणागति की महिमा
- पञ्चमोऽध्यायः - श्री भगवती गीता (पार्वती गीता) माहात्म्य
- श्री भगवती स्तोत्रम्
- लघु दुर्गा सप्तशती
- रुद्रचण्डी
- देवी-पुष्पाञ्जलि-स्तोत्रम्
- संक्षेप में पूजन विधि